पूर्वांचल

काशी का रहस्यमयी नागकूप,दर्शन मात्र से मिलती है कालसर्प-दोष से मुक्ति

स्कन्द पुराण में है कार्कोटक वापी का जिक्र, नागों के राजा इसी कुंड से गए थे पाताल

वाराणसी 9 अगस्त :राजा परीक्षित को नाग ने डस लिया था। इस पर क्रोधित उनके बेटे जन्मेजय ने एक बड़ा हवन कर सभी सर्पों को खत्म करने की प्रतिज्ञा ली। वो हवन में जिस सर्प का नाम लेकर स्वाहा कहते वह स्वयं आकर हवन कुंड में जल जाता। यह देख रहे नागराज कार्कोटक इंद्र भगवान के पास पहुंचे और कहा कि मेरा नाम बुलाने पर मै भी इस हवन कुंड में स्वाहा हो जाऊंगा।’

इस पर भगवान इंद्र ने उनसे शिव की तपस्या करने को कहा जिस पर उन्होंने कठोर तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अपने अंदर समाहित कर लिया। कहा जाता है कि इसके बाद कार्कोटक इसी कुंड के रास्ते पाताल लोक चले गए।’
ये कहकर नागकूप के पुजारी शास्त्री चंदन पांडेय ने नागेश्वर महादेव को नमन किया और बताया कि इस नागकूप में 80 फिट नीचे नागेश्वर महादेव का शिवलिंग है जिसकी स्थापना अपने तेज से महर्षि पतंजलि ने की थी। वहीं आचार्य कुंदन पांडेय ने बताया कि इसका वर्णन स्कन्द पुराण में है।

स्कन्द पुराण में दर्ज है नागकूप

जैतपुरा स्थित नागकूप के पुजारी आचार्य कुंदन पांडेय ने बताया- श्रवण शुक्ल पंचमी तिथि को नागपंचमी मनाई जाती है। यह जो स्थान है इसका जिक्र स्कन्द पुराण में है और यह कार्कोटक वापी के यानी नाग कूप के नाम से दर्ज है।
यह स्थान नाग के राजा से संबंध रखता है और नाग लोक जाने का रास्ता है। नागपंचमी के दिन यहां पूजा अर्चना का अपना महत्व है। यहां दूध, लावा और तुलसी की माला चढाने का मान है।

सतयुग में यहीं काटा था राजा हरिश्चंद्र के बेटे को सांप

आचार्य कुंदन ने बताया – सतयुग से इस नागकूप का रिश्ता बताया जाता है। कहा जाता है कि राजा हरिश्चंद्र के बेटे को इसी जगह सांप ने काटा था। इसके अलावा इसकी किसने स्थापना की यह नहीं मिलता लेकिन यह जरूर है कि महर्षि पतंजलि और उनके गुरु पाणिनी का यहां से रिश्ता है।
उन्होंने यहां महा-भाष्य सरीखे ग्रंथों की रचना की थी और महर्षि पतंजलि को शिक्षा दीक्षा दी थी। इसी जगह योगसूत्र की भी रचना हुई थी।

कालसर्प दोष से मुक्ति का केंद्र

आचार्य कुंदन ने बताया– यह नागकूप कालसर्प दोष से मुक्ति का केंद्र है। उसके लिए यहां पूजन करवाना सर्वोत्तम है। इसके लिए पुराणों में नासिक, उज्जैन और काशी तीन जगह है। जिसमें से यह नागकूप सर्वप्रथम स्थान है। यहां का पानी ले जाकर घरों में छिड़कने से सांप के डसने से सुरक्षा होती है।
यहां काल सर्प दोष की शान्ति का केंद्र है। इसे कालसर्प दोष के पूजन का स्थान मना जाता है। इसमें नासिक उज्जैन और काशी तीन जगह है। जिसमें काशी का सर्वप्रथम स्थान है। काल सर्प दोष के लिए महत्वपूर्ण है। तुलसी का माला, दूध और लावा नाग देवता को समर्पित करते हैं। सर्प दंश और नाग दोष से मुक्ति मिल सके।

Prabandh Sampadak chandrashekhar Singh

Prabhand Sampadak Of Upbhokta ki Aawaj.

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