एक झलक

भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा में शामिल होने पर मिलता है एक हजार यज्ञ का फल,जानिए इस यात्रा का धार्मिक और पौराणिक महत्व

6 जुलाई 2024
7 जुलाई को ओडिसा के पुरी में निकलने वाली ‘भगवान जगन्नाथ’ की रथ यात्रा के बारे में। इस रथ यात्रा का क्या पौराणिक महत्व है। इस रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ के अलावा किस-किस के डोले सम्मिलित किए जाते हैं, भगवान जगन्नाथ कौन हैं, कितने भक्त इस शोभा यात्रा को देखने के लिए आते हैं।

ओडिसा में के पुरी में स्थित भगवान जगन्नाथ मंदिर के बारे में कौन नहीं जानता। यह मंदिर विश्व प्रसिद्ध है और देश के चार धामों में से यह एक धाम भी है। बद्रीनाथ उत्तराखंड, द्वारका गुजरात, रामेश्वरम तमिलनाडु और पुरी ओडिसा यह चार धाम है जिन्हें बैकुंठ लोक भी कहा जाता है। बैकुंठ लोक का आशय यह होता है जो नगर भगवान ने स्थापित किए हैं या फिर जहां भगवान खुद विराजते हैं वही बैकुंठ धाम कहा जाता है। अब बात कर लेते हैं भगवान जगन्नाथ की रथ शोभा यात्रा की।
रथ शोभा यात्रा हर साल आषाढ़ महीने की द्वितीया तिथि पर निकाली जाती है जो इस बार 7 जुलाई की है। इस यात्रा के पीछे कई मान्यताएं है। प्रमुख मान्यता यह है कि भगवान कृष्ण अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ अपनी मौसी गुंडिचा के घर जाते हैं और 7 दिन बाद लौटकर आते हैं। इस रथ यात्रा में तीन रथ होते हैं सबसे आगे वाले रथ पर भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम विराजते हैं, बीच वाला रथ बहन सुभद्रा का होता है और पीछे वाले रथ पर भगवान जगन्नाथ विराजमान होते है। भगवान कृष्ण को ही भगवान जगन्नाथ कहा जाता है। इस रथ यात्रा के बारे में एक और कहानी प्रचलित है वह यह है कि एक बार भगवान कृष्ण की बहन सुभद्रा ने भगवान कृष्ण के सम्मुख नगर भ्रमण की इच्छा जताई। इस इच्छा को पूरा करने के लिए भगवान कृष्ण बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ रथों पर विराजमान हुए और सुभद्रा को नगर भ्रमण कराया तभी से यह परंपरा चली आ रही है। मान्यता तो यह भी है कि इस रथ यात्रा में जो भी व्यक्ति शामिल हो जाता है या दर्शन मात्र कर लेता है उसे 1000 यज्ञ करने जितना फल प्राप्त होता है। जगन्नाथ रथ यात्रा उत्सव की शुरुआत 12 वीं सदी से 16वीं सदी के बीच हुई थी।

इस मंदिर में भगवान बलराम भगवान कृष्ण और सुभद्रा एक साथ क्यों विराजमान है इसके बारे में एक पौराणिक कथा भी है एक बार भगवान कृष्ण की रानियों ने यशोदा की बहन और बलराम और सुभद्रा की मां से श्री कृष्ण की रासलीला के बारे में पूछा तो रोहिणी को सुभद्रा के सामने श्री कृष्णा की लीलाओं के बारे में बताना उचित नहीं समझा और उन्हें बाहर भेज दिया। सुभद्रा बाहर चली गई। उसी समय वहां श्री कृष्णा और बलराम भी आ गए तीनों भाई बहन चुप कर रोहिणी को सुन रहे थे। उसी समय वहां ऋषि नारद आए और तीनों भाई बहन को एक साथ देकर उन्होंने प्रार्थना की के तीनों भाई-बहन हमेशा ऐसे ही साथ रहें। भगवान ने ऋषि नारद की प्रार्थना स्वीकार की तभी उसे पुरी के इस मंदिर में भगवान जगन्नाथ के मंदिर में तीनों भाई बहन एक साथ विराजमान हुए। इस शोभयात्रा में भाग लेने के लिए देश ही नहीं बल्कि विदेश से लाखों लोग पुरी जाते है। तो आप भी भगवान जगन्नाथ प्रभू के दर्शन का पुण्य लाभ ले सकते है

नोट-यह कहानी धार्मिक और पौराणिक मान्यताओं पर आधारित है।

Prabandh Sampadak chandrashekhar Singh

Prabhand Sampadak Of Upbhokta ki Aawaj.

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