माघ में कल्पवास करने से प्राप्त होता है प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाने साहस :जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामिश्री: अविमुक्तेश्वरानन्द: सरस्वती
प्रयागराज 8 फरवरी: शंकराचार्य शिविर में अपने नियत समय दोपहर 12 बजे परमाराध्य परमधर्माधीश ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामिश्री: अविमुक्तेश्वरानन्द: सरस्वती ‘1008’ जी महाराज जब मंचासीन हुए तो सामने शंकर भगवान् स्वरुप स्वामीश्री के दर्शनार्थ भक्तों की भारी भीड़ पंडाल में उपस्थित थी। प्रयाग में माघ माहात्म्य पर अपने भक्तों के लिए श्रीमुख से कथा शुरू ही की थी की अचानक से युवा छात्र छात्राओं का करीब 100 सदस्यीय दल मंच के सामने आ खड़ा हुआ। स्थिति समझ कर महाराज जी ने उनकी जिज्ञासाओं के समाधान के लिए स्वतंत्रता प्रदान की तो विभिन्न विषयों से जुड़े प्रश्नों की झड़ी लग गयी।
महाराजश्री उनकी धर्म ,सनातन संस्कृति और गौ संसद से जुड़े प्रश्नों को सुन आश्चर्य चकित थे। आम तौर पर धैर्य धारण रखने वाले स्वामीश्री युवाओं के कौतूहल पर मुस्कुरा उठे और एक-एक कर उन सभी की जिज्ञासाओं का समाधान करते रहे। समाज शास्त्र की विद्द्यार्थी आराध्या ने जब पूछा कि विद्यार्थी जीवन के कौन से धर्म उसे दृढ़ संकल्पित करते हैं जिससे वो जीवन में सफलता प्राप्त कर सकते हैं? सीएमपी डिग्री कॉलेज के आदित्य राज ने अपने प्रश्न कर्म सिद्धान्त पर महाराजश्री के उत्तर पर हर्ष व्यक्त करते हुए बताया कि अपने धर्म का पालन करते हुए कैसे मनुष्य कर्म से मोक्ष तक की यात्रा सरलता से पूर्ण कर सकता है,’ इसे जान कर अब वो अवसाद से जूझते अपनी उम्र के छात्र छात्राओं को मौत के मुंह में जाने से बचा सकता है। सुनील यादव और पवन ने महाराज श्री के प्रारब्ध और जीवन पर दिए ज्ञान को अपने आज के अनुभव की सत्यता से जोड़ कर इनकी आदि कालीन व्याख्या पर आश्चर्य व्यक्त किया। विद्यार्थियों के साथ पधारे उनके गुरुजन अनंत सिंह और जितेंद शर्मा भी जगतगुरु के ज्ञान मीमांसा की प्रत्यक्ष अनुभूति से चकित दिखे। शंकराचार्य स्वामीश्री के तेज और ज्ञान के प्रकाश से प्रभावित युवा पीढ़ी के मानक आज शिविर से लौटते हुए संतुष्ट और संकल्पित दिखे जो निश्चित ही सनातन धर्म के प्रति उनके आदर्शों को पुष्पित पल्लवित करेगी।
इस अवसर पर अपने विशेष संदेश में परमाराध्य परमधर्माधीश ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामिश्री: अविमुक्तेश्वरानन्द: सरस्वती ‘1008’ जी महाराज ने कहा कि प्रयाग में माघ का महात्म्य बहुत ही विशिष्ट है। माघ मास में संगम तट पर कल्पवास करने वालों को जन्म जन्मांतर के पापों से मुक्ति मिलती है। इतना ही नहीं प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाने साहस भी माघ में कल्पवास करने से प्राप्त होता है। तीर्थराज की यह भूमि विपरीत परिस्थितियों में भी सहज और संतुलित रहने का सबक कल्पवासियों को सिखाती है। प्रकृति के साथ कैसे तालमेल बना कर चलना चाहिए इसका अद्भुत उदाहरण यहां देखा जा सकता है। बुजुर्ग से बुजुर्ग जन भी कल्पवास में युवाओं की भांति सक्रिय दिखाई देते हैं। यह सक्रियता वयोवृद्धों में भी नवीन उत्साह का संचार करती है और उन्हें धर्म कार्य में संलग्न होने के लिए प्रेरित करती रहती है। यही नहीं जो लोग सिर्फ भ्रमण करने के लिए ही इस परम पवित्र क्षेत्र में आते हैं उन्हें भी प्रकृति की सकारात्मकता की अनुभूति होती है। यह अनुभूति उन्हें भी सद् मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती है। माघ महीने में कल्पवास का विधान प्राचीन भारतीय संस्कृति का वह अध्याय है जिसे आक्रांताओं द्वारा किए गए अनेकानेक कुत्सित प्रयास भी समाप्त नहीं कर सके। जब तक धर्मप्राण जनमानस अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ धर्मकार्य के लिए समर्पित रहेगा तब तक इस अध्याय को विस्तार मिलता रहेगा।
नौ फरवरी को प्रातः 9 बजे परमाराध्य परमधर्माधीश ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामिश्री: अविमुक्तेश्वरानन्द: सरस्वती ‘1008’ जी महाराज मौनी अमावस्या के दिव्य स्नान के ही मेलाक्षेत्र से अपनी आगे की यात्रा को प्रस्थान करेंगे।