विद्युत विभाग:पूर्वान्चल की सिविल(जानपद)इकाई दुर्योधन तो पूर्वान्चल प्रबंधन धृतराष्ट्र की भूमिका में:चपरासी से लगायत अधिकारी तक भ्रष्टाचार में लिप्त

वाराणासी 11 जनवरी:पूर्वान्चल विद्युत वितरण निगम करोड़ो/अरबो के भ्रष्टाचार के मामलों में सुर्ख़ियो में लगातार बने रहने की दूसरी तरफ पूर्वान्चल निगम की सिविल(जानपद) इकाई भी समानांतर अपने भ्रस्टाचारी कारनामो से सुर्खियों में बनी हुई है।
पूर्वान्चल की सिविल इकाई का वाराणासी डिवीज़न तो भ्रष्टाचार में नंबर एक पर है जिसके भ्रष्टाचार की जांच सरकार की जांच एजेंसियों के साथ कारपोरेशन भी करने में लगा है।
गोरखपुर में भ्र्ष्टाचार का डंका
ताजा मामला गोरखपुर जानपद डिवीज़न का है जंहा पर पैनल रेंट के नाम पर अधिकारियों संग बाबू भ्रष्टाचार की दूकान खोल रखी है। सेवानिवृत्त होने वाले कर्मचारी/अधिकारी को जानपद की NOC चाहिये वो बाबू को चढ़ावा दिए बगैर Noc नही प्राप्त कर सकता है।
अगर कोई कर्मचारी विभागीय आवासों में रह चुका है या रह रहा है उसका तो ज़्यादा उत्पीड़न कर उसका खून चूसने का काम किया जा रहा है।किसी कर्मचारी/अधिकारी का पैनल रेंट लगा है तो मोटी रकम लेकर बिना पैनल रेंट की बकाया राशि जमा कराये NOC दी जा रही है।
भ्रष्ट बाबू की कहानी
बताते चले एक कर्मचारी श्री बसंत कुमार जयसवाल चपरासी पद पर वर्ष-1997 में गोरखपुर डिवीज़न सिविल इकाई में नियुक्त होता है वर्ष-2007 में प्रमोट हो कर बाबू बन जाते है बिना ट्रांसफर के ज़नाब को उसकी कार्यालय में बाबू की कुर्सी नवाज़ी जाती है। बाबू की कुर्सी पाते ही ज़नाब भ्रष्टाचार में लिप्त हो जाते है जनाब 30 वर्षो से एक ही कार्यालय में तैनात है और भ्रष्टाचार की दूकान को बे रोक टोक चलाते आ रहे है। यही नही अधिकारियों की कृपा दृष्टि से 22 वर्षो से एक ही कार्य पटल पर कब्ज़ा जमाये हुए है।
सूत्रों के अनुसार भ्रष्टाचार की दूकान से कमाई गई काली कमाई से ज़नाब अधिकारियो को महंगी चड्ढी से लेकर घर के दाल चावल का इंतज़ाम करते रहते है।
वैसे बिजली विभाग में हर तीन वर्ष पर कार्य पटल बदलने औऱ 10-15 वर्षो में मंडल/डिवीज़न बदलने के नियम है।।
पड़ताल जारी है……..
भ्रष्टाचार और भ्र्ष्टाचारियो के विरुद्ध युद्ध शेष है…….