17 दिसम्बर- भारतीय स्वातंत्र्य समर के क्रांतिकारी संग्राम का एक अविस्मरणीय
17दिसंबर 2023
17 दिसम्बर 1927 को महान क्रांतिकारी राजेन्द्र लाहिड़ी का बलिदान और ठीक एक साल बाद 17 दिसम्बर 1928 को लाला लाजपत राय की हत्या का बदला लिया गया जब लाला जी पर बर्बर लाठीचार्ज करने वाले लाहौर के डिप्टी एस पी सांडर्स का लाहौर कोतवाली के सामने गोली मर कर काम तमाम कर दिया गया ।
राजेंद्र लाहिड़ी का जन्म पूर्वी बंगाल में हुआ था। वे एक जन्मजात क्रांतिकारी थे या कहना चाहिए गर्भ में रहते हुए ही अभिमन्यु की तरह उनके अन्दर क्रान्ति की ज्वाला समाहित हो गई थी। कारण यह कि जब वे गर्भ में थे तब उनके क्रांतिकारी पिता क्षिति मोहन लाहिडी और उनके क्रांतिकारी बड़े भाई दोनों ही जेल में थे।09 वर्ष की आयु में उनके मामा उन्हें काशी ले आए और वे शचींद्र नाथ सन्याल एवं पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के सम्पर्क में आने के बाद हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य हो गए।
काकोरी क्रान्ति में उनकी बड़ी भूमिका थी। सरकारी खजाना ले जा रही ट्रेन की चेन खींच कर उन्होंने ही ट्रेन रोकी थी। बाद में वे बम बनाना सीखने के लिए कोलकाता चले गए और एक साथी की गलती से बम फट जाने के कारण शोरगुल होने पर दक्षिणेश्वर में गिरफ्तार किए गए। इस अपराध में उन्हें दस साल की सजा हुई। बाद में काकोरी क्रान्ति में नाम आने के कारण उन्हें लखनऊ जेल में ट्रांसफर किया गया। काकोरी क्रांति में उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई यद्यपि कि उन्होंने किसी की भी हत्या नहीं की थी।उन्हें ब्रिटिश हुकूमत के लिए बड़ा खतरा मानते हुए फांसी की सजा दी गई।
फांसी के पूर्व उन्होंने 14 दिसम्बर को एक पत्र लिखा था …..
“देश की बलिवेदी को हमारे रक्त की आवश्यकता है मृत्यु क्या है जीवन की दूसरी दिशा के अतिरिक्त और कुछ नहीं इसलिए मनुष्य मृत्यु से दुख और भाई क्यों माने वह तो निशांत स्वाभाविक व्यवस्था है उतनी ही स्वाभाविक जितना प्रातः कालीन सूर्योदय यदि सच है कि इतिहास पलटा खाया करता है तो मैं समझता हूं कि हमारी मृत्यु व्यर्थ नहीं जाएगी सबको मेरा नमस्कार….. अन्तिम नमस्कार।”
फांसी वाले दिन तड़के उठकर वह कसरत कर रहे थे। अंग्रेज जेलर ने यह दृश्य देखा तो वह भौचक्का रह गया। उसने पूंछा थोड़ी देर में तुम्हे फांसी होने वाली है और तुम व्यायाम कर रहे हों। उन्होंने कहा … मैं मरने नहीं जा रहा हूं। मैं पुनर्जन्म लेने जा रहा हूं। उनका यह वाक्य गोंडा जेल में अंकित है। काकोरी क्रान्ति में चार लोगों को फांसी की सजा सुनाई गई थी। सभी को अलग अलग जेलों में 19 दिसम्बर को फांसी होनी थी किन्तु राजेन्द्र लाहिड़ी को दो दिन पहले 17 दिसम्बर को गोंडा जेल में फांसी दे दी गई। यह रहस्य आज तक पता नहीं।काकोरी क्रान्ति के अमर शहीद राजेन्द्र लाहिड़ी ने गोण्डा जेल में वन्दे मातरम का उद्घोष करते हुए 17 दिसम्बर 1927 को फाँसी का फंदा चूम लिया और अमर हो गए।
लाला लाजपत राय जब साइमन कमीशन का विरोध कर रहे थे तब लाहौर में 30 अक्टूबर 1928 को एस पी स्कॉट और डिप्टी एस पी सांडर्स ने उन पर बेरहमी से बर्बर लाठीचार्ज किया था। चोटें इतनी गम्भीर थीं कि 17 नवम्बर 1928 को लाला जी का निधन हो गया। लाला जी के चरणों की सौगंध खाकर चन्द्र शेखर आजाद और भगत सिंह ने संकल्प लिया कि लाला जी की हत्या का बदला एक माह के अंदर ले लिया जाएगा। ठीक एक माह बाद 17 दिसम्बर 1928 को भगत सिंह और शिवराम राजगुरु ने लाहौर कोतवाली के गेट पर डिप्टी एस पी सांडर्स को गोलियों से भून कर उसका काम तमाम कर दिया। चन्द्र शेखर आजाद दोनो क्रांतिकारियों को कवर दे रहे थे।
इस प्रकार 17 दिसम्बर भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन की अविस्मरणीय तारीख बन गई है।
शत शत नमन ऐसे अमर वीरों को …….
वन्दे मातरम्।।