कविता-कहानी

कृष्ण और हम

31अगस्त2021

कृष्णावतार नारायण, श्री हरि विष्णु के चौविस अवतारो मे से एक है। यह द्वापर युग का प्रसंग है। जहाँ रामजी ने बिलकुल साधारण तरीके से अपनी लीला की वहीं भगवान कृष्ण ने जन्म से ही ऐसी लिलाऐ की जो उन्हे कोई दैवीय शक्ति सिद्ध करती है।

कृष्ण पक्ष की अष्टमी,

अर्द्ध रात्री बुधवार।

कंस के कारागृह मे,

भयो कृष्ण अवतार।।”

माता देवकी की सातवी सन्तान के रूप मे बलराम जी को माया देवकी के गर्भ से रोहिणी के गर्भ मे स्थानान्तरित करना, फिर कृष्ण के जन्म लेते ही योग माया के वशीभूत होकर सभी द्वारपालो का बेहोश होना और वसुदेव जी और देवकी की बेडियाँ टूट जाना और वसुदेव का उन्हे पालने मे लेकर चले जाना, उफनती जमुना मे भी होकर गुजरना और फिर शेषनाग का भगवान को छाव करके बारिष से बचाना और फिर माँ यशोदा का बेसुध होना।

वसुदेव जी द्वारा कृष्ण को रख कर योगमाया को ले जाना ,कंस द्वारा उसे मारने का प्रयास करने पर योगमाया द्वारा अष्टभुजाकार देवी का रूप धारण करना ये सारी बाते सिद्ध करती है कि कृष्ण को साधारण मानव नहीं बल्कि कोई अवतारी थे। और इसका परिचय वे जन्म से ही देते चले।पर फिर वे माया का परदा डालकर सब को भूला देते थे। बचपन मे ही पूतना का वध, वृषभासुर, बकासुर आदि दुर्दान्त असुरो का वध और कालिया नाग का मान मर्दन और गोवर्धन का उठाना उनके भगवान होने का संकेत करते है।

पर इन अलौकिक लिलाओ को छोड दिया जाए तो उनका जीवन किसी साधारण ग्वाले के जीवन से बहुत मेल खाता है। गायों का पालन करके और वन मे बासुरी बजा कर उन्होने प्रकृति और प्राणी मात्र के प्रति संवेदनशीलता का एक अनूठा उदाहरण पेश किया। गोपियो की मटकी फोडना, रास रचाना, वस्त्र चूराना और कई बाल लिलाऐ उन्हें जनसामान्य और किसी नटखट बालक के जीवन के बहुत समीप ले आती है। कई लोग उनके गोपियों से प्रेम और राधा से प्रेम को कामुकता की श्रेणी मे लेकर अपनी संकीर्ण मानसिकता का परिचय देते है और अपनी कामूक प्रवृत्तियों की तुलना कृष्ण की लिलाओ से करने की भूल कर लेते है।

कृष्ण और राधा और गोपियो का सम्बन्ध तो आत्मा का परमात्मा से सम्बन्ध था वो तो शारीरिक था ही नहीं। उनका प्रेम तो ऐसा प्रेम था कि जो परम ग्यानी उद्धव को भी प्रेममय करनी की शक्ति रखता है।आज कल के प्रेमी प्रेमिका अपने आप को राधा कृष्ण कह तो देते हैं पर वे राधा कृष्ण की धूल के बराबर भी नहीं है क्योंकि वे एक-दूसरे से विवाह बन्धन मे नहीं बन्धे और ना कभी शारीरिक सम्बन्धों मे रहे पर फिर भी अमर हो गए। इसके अलावा जरासंध के आक्रमणो से अपनी राजधानी परिवर्तित कर लेना उनके कूटनीतिक चरित्र को दर्शाता है।

कुरुक्षेत्र मे अर्जुन को गाण्डिव धारण करने का प्रवचन उनके कर्मयोगी होने की तरफ इशारा करता है। गीता मे कही गयी हर बात आज भी किकर्तव्य विमूढ हर व्यक्ति का युगों युगों तक मार्गदर्शन करेगी। कौरवो के छल को छल से उत्तर देना उनके सबसे बडे राजनेता होने और “जैसे को तेसा” वाली उक्ति को चरितार्थ करता है। संक्षेप मे कृष्ण हमारे लोक जीवन के बहुत समीप लगते हैं और हम अपने कई कार्यो मे कृष्ण की झलक महसूस करते हैं।

Prabandh Sampadak chandrashekhar Singh

Prabhand Sampadak Of Upbhokta ki Aawaj.

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