क्या लोक जनशक्ति पार्टी को विभाजित करने के पीछे भाजपा की भूमिका?

दिल्ली 17जून2021: राजनीति के मौसम वैज्ञानिक के रूप में चर्चित स्व. रामविलास पासवान द्वारा स्थापित लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) विभाजित हो गई है। रामविलास पासवान के छोटे भाई पशुपति कुमार पारस ने लोजपा पर कब्जा कर लिया है। लोजपा को विभाजित करने में भाजपा ने बड़ी भूमिका निभाई है। भाजपा के इशारे पर ही लोकसभा अध्यक्ष ने नए गुट के नेता को तुरंत आनन- फानन में नए नेता के रूप में मान्यता भी दे दी है।
लोक जनशक्ति पार्टी को स्व.रामविलास पासवान ने बनाया था और इसको काफी संघर्ष करके स्थापित किया था।रामविलास पासवान बिहार में दलितों के बड़े नेता थे। वे जब तक जीवित रहे, किसी की हिम्मत नहीं हुई कि वह उनके सामने खड़ा हो। वे दलितों यानि दलित समाज के वोटरों पर मजबूत पकड़ रखते थे। दलित समाज के वोटर भी उन्हें काफी सम्मान करते थे। यही कारण था कि रामविलास पासवान बिहार में दलितों के बड़े नेता थे। वे राजनीतिक क्षेत्र में राजनीति के मौसम वैज्ञानिक के रुप में चर्चित थे। इसका मतलब यह है कि वह राजनीति में बहने वाली हवाओं के रुख को भांप लेने में माहिर थे। वे राजनीति में बहने वाली हवा के रुख को भांप कर तुरंत राजनीति में फैसले करते थे। यही कारण है कि वह अपने राजनैतिक जीवन में अधिकतर समय सत्ता में बिताया।
उन्होंने दलितों के लिए काफी संघर्ष किया। यही वजह है कि दलितों की राजनीति में उनके सामने कोई नहीं खड़ा हो सका। लोकसभा चुनाव हों या विधानसभा चुनाव हर राजनीतिक दल उनको अपने साथ रखने के लिए बेचैन रहता था। क्योंकि रामविलास पासवान के साथ आने से राजनीतिक दलों को सत्ता लगभग मिल ही जाती थी। यही वजह है कि लंबे वक्त रामविलास पासवान को कांग्रेस अपने साथ रखे रही और वह केंद्र सरकार में लंबे समय तक मंत्री रहे। 2014 में वह भाजपा के साथ आ गए और भाजपा को केंद्र में बैठने का मौका मिला। भाजपा सरकार में वह नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार में मरते दम तक मंत्री रहे।
रामविलास पासवान बिहार में बीते विधानसभा चुनाव के समय खत्म हो गए। उनके निधन के बाद लोजपा की बागडोर चिराग पासवान ने संभाली। चिराग पासवान ने एनडीए से अलग होकर बिहार में विधानसभा चुनाव लड़ा। उनकी पार्टी को विशेष सफलता नहीं मिली। उनकी पार्टी का एक विधायक चुना गया। चिराग पासवान की पार्टी ने भले ही उल्लेखनीय सफलता नहीं हासिल की, लेकिन लोजपा ने बिहार में जदयू को तीसरे स्थान पर पहुंचा दिया। विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान ने जदयू और नीतीश कुमार का खूब विरोध किया। विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान ने चुनाव के दौरान खुलकर मतदाताओं से जदयू और नीतीश कुमार को हराने के लिए कहा।चिराग पासवान ने चुनाव में जदयू के खिलाफ अपने उम्मीदवार भी उतारे, लेकिन भाजपा के खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारा। चुनाव में चिराग पासवान कहते रहे कि मोदी मेरे राम हैं और मैं उनका हनुमान हूं। इससे विधानसभा चुनाव में एन डी ए की स्थिति खराब हुई और उसे असहज स्थिति से गुजरना पड़ा।
चुनाव के दौरान एनडीए में काफी उठापटक चलती रही। मजबूर होकर भाजपा को चिराग पासवान से पल्ला झाड़ने की घोषणा करनी पड़ी और उसने चिराग पासवान से पल्ला झाड़ लिया। लेकिन चुनाव परिणाम ने जदयू और नीतीश कुमार को डुबो दिया। लालू प्रसाद यादव की पार्टी राजद पहले नम्बर पर पहुंच गई और भाजपा दूसरे स्थान पर रही। जदयू तीसरे नंबर पर पहुंच गई। भाजपा ने बड़ी पार्टी होने के बावजूद नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाया। जदयू और नीतीश कुमार की विधानसभा चुनाव में स्थिति कमजोर होने से चिराग पासवान को ख़ुश नज़र आए।
रामविलास पासवान के सगे छोटे भाई पशुपति कुमार पारस ने चिराग पासवान को लोजपा अध्यक्ष और संसदीय दल के नेता के पद से हटा दिया। लोजपा के 6 लोकसभा सदस्य हैं। 6 में से 5 ने अपना नया गुट बना लिया और चिराग पासवान को संसदीय दल के नेता के पद से हटा दिया। नए गुट के नेता पशुपति कुमार पारस बन गए और इन्होंने लोकसभा अध्यक्ष के पास जाकर नए नेता के रूप में मान्यता देने का अनुरोध किया। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने तुरंत आनन फानन में पशुपति कुमार पारस को लोजपा के लोकसभा में संसदीय दल के नए नेता के रुप में मान्यता भी दे दी। इस तरह भाजपा ने लोजपा को विभाजित कर दिया। अगर लोजपा को बंटवाने में भाजपा की दिलचस्पी नहीं होती तो लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला इतनी जल्दी इस प्रकार का कोई फैसला नहीं करते। चूंकि भाजपा ने लोजपा के बंटवारे में खुद दिलचस्पी दिखाई, इसलिए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने तुरंत फैसला कर दिया।
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने चिराग पासवान का न तो पक्ष जाना और न ही उन्हें सुनवाई का कोई मौका दिया।लोकसभा अध्यक्ष ने एकतरफा फैसला सुनाया और पशुपति कुमार पारस को लोजपा के नए नेता के रूप में लोकसभा में मान्यता दे दी। लोकसभा अध्यक्ष के फैसले पर मैं कोई टिप्पणी नहीं कर रहा हूं, यह फैसला उनका अपना है। लेकिन अगर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला चिराग पासवान को सुनवाई का मौका देते तो स्वस्थ राजनीति की परंपरा कायम रहती और राजनीति में यह उनका फैसला एक नजीर बनता। चिराग पासवान माने या न माने, लेकिन लोजपा का बंटवारा भाजपा के इशारे पर ही हुआ है। अन्यथा इतनी जल्दी लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला कोई फैसला नहीं करते। चिराग पासवान मोदी को राम और खुद को उनका हनुमान कहते हुए कभी नहीं थकते थे। किंतु मोदी रूपी राम ने हनुमान को धक्का देकर गिरा दिया और लोजपा का बंटवारा करा दिया।
बिहार में नीतीश कुमार को सत्ता जरूर मिल गई। लेकिन नीतीश कुमार को राजनीतिक रूप से तगड़ा झटका लगा। नीतीश कुमार ने इसके लिए चिराग पासवान को जिम्मेदार माना। अपनी कमजोर स्थिति को देख कर नीतीश कुमार ने चिराग पासवान की पार्टी को और चिराग पासवान को राजनीतिक रूप से खत्म करने के लिए मन बनाया। नीतीश कुमार ने इसकी शुरुआत रामविलास पासवान के निधन से रिक्त हुई राज्यसभा की सीट पर सुशील कुमार मोदी को राज्यसभा सदस्य बनवाकर की। जबकि चिराग पासवान अपनी मां रीना पासवान को राज्यसभा में भेजना चाहते थे। इसीके बाद भाजपा और चिराग पासवान के संबंध में बिगाड़ पैदा हुआ। लेकिन चिराग पासवान ने अपना मुंह बंद ही रखा। वे केंद्र सरकार में होने वाले मंत्रिमंडल विस्तार का इंतजार कर रहे थे। लेकिन इसी बीच दो दिन पहले अचानक लोजपा बंट गई। चिराग पासवान को समझने का कुछ मौका नहीं मिला। रामविलास पासवान के सगे छोटे भाई पशुपति कुमार पारस ने लोजपा पर कब्जा कर लिया।
लोजपा के बंटवारे का मामला अभी चुनाव आयोग की चौखट पर जाएगा। चुनाव आयोग के फैसले के बाद ही तय होगा कि असली लोजपा किसकी है। लेकिन इस सबके बावजूद लोजपा के बंटवारे से पार्टी का कार्यकर्ता चिराग पासवान के साथ खड़ा नजर आ रहा है। चिराग पासवान के धड़े ने पटना में पार्टी दफ्तर पर कब्जा कर रखा है। पार्टी कार्यकर्ताओं ने दफ्तर में लगे हुए लोजपा से अलग हुए सांसदों के फोटो पर स्याही पोत कर विरोध जताया है और अलग हुए नेताओं को पार्टी दफ्तर में घुसने से रोंकने का फैसला किया है।
रामविलास पासवान की पहली पत्नी राजकुमारी और उनके दामाद अनिल कुमार साधू लोजपा की इस लड़ाई में चिराग पासवान के साथ खड़े हुए हैं। अनिल कुमार साधू ने खुलेआम घोषणा की है कि वह चिराग पासवान और उनकी मां रीना पासवान के साथ हैं। अनिल कुमार साधू लालू प्रसाद यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के बड़े नेता और पार्टी के अनुसूचित जाति के प्रकोष्ठ के अध्यक्ष हैं। वे कहते हैं कि, पशुपति कुमार पारस ने गद्दारी की है। यह गद्दारी उनको बड़ी ही मंहगी पड़ेगी, क्योंकि दलित समाज का वोटर उन्हें इसका दंड ही नहीं देगा बल्कि बहुत बड़ा सबक सिखाएगा। पशुपति कुमार पारस राजनीति करना भूल जाएंगे।
बिहार के पूर्व सांसद प्रो.अरुण कुमार कहते हैं कि, लोजपा के बंटवारे से पशुपति कुमार पारस को कुछ नहीं हासिल होगा। बिहार में दलित समाज के वोटर रामविलास पासवान और लोजपा के साथ थे और रहेंगे। रामविलास पासवान ने दलितों के लिए जो कुछ किया है, उसे कोई भी जल्दी-जल्दी नहीं कर सकता है। वे दलितों के सर्वमान्य नेता थे। दलित समाज उनके द्वारा किए गए काम को कभी भी नहीं भुला सकता है। दलित समाज का वोटर लोजपा के साथ और चिराग पासवान के साथ ही रहेगा, कोई गलतफहमी न पाले। राजनीतिक तूफान में चिराग पासवान का चिराग संघर्ष से जूझकर जलता रहेगा। धोखेबाजों को जनता धोखाधड़ी करने का सबक जरूर सिखाएगी।
बिहार में भाजपा और जदयू की मिलीजुली सरकार है। यह सरकार जीतन राम मांझी और मुकेश सहनी की छोटी – छोटी पार्टी के सहयोग से चल रही है। इन पार्टियों की बैसाखी के सहारे सरकार चल रही है। लेकिन इन पार्टियों के नेता जीतन राम मांझी और मुकेश सहनी सरकार पर दबाव बनाने से लेकर धमकाने तक का काम करते रहते हैं। इसके अलावा भाजपा और जदयू के नेता भी आपस में लड़ते रहते हैं। सरकार में शामिल दोनों पार्टियों के मंत्री भी अक्सर लड़ते-झगड़ते रहते हैं। बिहार में राजनीति का परिदृश्य अस्थिर है। कभी भी राजनीति में परिवर्तन हो सकता है। इसको लेकर भाजपा और खासकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बहुत ही चिंतित हैं।
भाजपा का अब सारा फोकस पश्चिम बंगाल, बिहार और यूपी पर है। भाजपा दिल्ली की सत्ता पाने के लिए इन 3 राज्यों को अपने साथ रखना चाहती है। लेकिन भाग्य उसका साथ नहीं दे रहा है। इसके बावजूद भाजपा कवायद कर रही है। भाजपा और मोदी यह मानकर चल रहे हैं कि बिहार में कभी भी राजनीति में उलटफेर हो सकता है।इसीलिए बिहार में वह अपने को मजबूत बनाने के लिए प्रयास कर रहे हैं। क्योंकि बिहार में राजनीतिक परिदृश्य बदलने पर भाजपा को नए साथियों की जरूरत होगी और नए साथी तभी मिलेंगे, जब दूसरे दलों में तोड़फोड़ की जाए। इसीलिए भाजपा ने योजनाबद्ध तरीके से लोजपा का बंटवारा करवाया है। लोजपा का यह नया गुट मोदी सरकार के साथ खड़ा हो गया है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लोजपा के इस गुट को अपने साथ साधकर बिहार में भाजपा को मजबूत बनाने का सपना देख रहे हैं। वे यह मानकर चल रहे हैं कि लोजपा के नए गुट के साथ आने से बिहार में भाजपा को मजबूती मिलेगी, क्योंकि दलितों के वोट पशुपति कुमार पारस भाजपा को दिलवाने का काम करेंगे। वे मानकर चल रहे हैं कि रामविलास पासवान के न रहने से दलितों का वोट अब पशुपति कुमार पारस के साथ आ गया है और वह दलितों के नेता हैं।लेकिन ऐसा नहीं है।
दलित समाज का वोटर चिराग पासवान के साथ साथ है, क्योंकि रामविलास पासवान ने अपने जीवित रहते हुए चिराग पासवान को न केवल लोजपा के संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष ही बनाया था बल्कि राजनीति के सारे दांव पेंच सिखा दिया था। लोजपा के बंटवारे से पार्टी का कार्यकर्ता चिराग पासवान के साथ खड़ा हो गया है। पशुपति कुमार पारस अपने बड़े भाई रामविलास पासवान के सहारे ही राजनीति करते रहे हैं। इनकी कोई राजनीतिक पकड़ नहीं है। दूसरों के इशारों पर इन्होंने लोजपा को बांटने का काम सत्ता का स्वाद चखने के लिए किया है। इनकी नज़र मोदी सरकार के मंत्रिमंडल में होने वाले विस्तार पर है। यह मानकर चल रहे हैं कि मंत्रिमंडल विस्तार में इन्हें मंत्री बनाया जा सकता है।
बिहार की राजनीति में कुछ लोग यह कयास लगा रहे हैं कि लोजपा को बंटवाने में जदयू की भूमिका है। जबकि ऐसा नहीं है। क्योंकि बिहार विधानसभा में लोजपा का केवल 1 विधायक है और उससे जदयू का कोई भला नहीं होने वाला है। अगर बिहार विधानसभा में लोजपा के विधायकों की संख्या अधिक होती तो यह मान लिया जाता कि नीतीश कुमार ने अपने फायदे के लिए लोजपा में तोड़फोड़ करवाई होती। जबकि ऐसा कुछ भी नहीं है।
हालांकि, यह अलग बात है कि लोजपा के बंटवारे से नीतीश कुमार को सबसे ज्यादा खुशी है कि लोजपा और चिराग पासवान एक झटके में राजनीतिक रूप से खत्म हो गए। लेकिन नीतीश कुमार की यह खुशी स्थाई नहीं हो सकती है। चिराग पासवान राजनीतिक संघर्ष में अपने को खड़ा करने में जरूर कामयाब होंगे।
लोजपा अध्यक्ष के पद से भी चिराग पासवान को हटा दिया गया है। चिराग पासवान को हटाते वक्त यह कहा गया था कि एक व्यक्ति एक पद का फार्मूला पार्टी में लागू किया जाएगा। लेकिन संसदीय दल के नेता बनने के बाद पशुपति कुमार पारस लोजपा अध्यक्ष भी बनने के लिए कमर कसे हुए हैं।
फिलहाल पूर्व सांसद सूरजभान सिंह को लोजपा का कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया गया है। लेकिन इसके साथ ही नए अध्यक्ष के चुनाव की घोषणा भी कर दी गई है। इस तरह एक व्यक्ति एक पद की बात करने वाले पशुपति कुमार पारस की पोल अभी से खुल गई है। क्योंकि वह संसदीय दल के नेता के साथ अध्यक्ष पद को भी हथियाने की जुगत में लगे हैं। पशुपति कुमार पारस के साथ प्रिंस राज, वीना देवी, महबूब अली कैसर और चंदन सिंह लोजपा के सांसद ने नया गुट बनाया है। लेकिन लोजपा कार्यकर्ता इनके साथ नहीं है।