देश के राष्ट्रीय जीवन में गांधी जी का प्रवेश इस युग की एक आश्चर्यजनक घटना
वाराणसी02अक्टूबर: इस भूतल पर कभी-कभी ऐसे महान पुरुषों का अवतार होता है, जिनसे एक देश, स्थान या क्षेत्र ही नहीं, बल्कि संपूर्ण भूमंडल उनके तेज से आलोकित हो उठता है , उनके आचरण प्रकाश की किरणें मानव मन की तमिस्रा के नाश के लिए उद्वेलित हो जाती हैं । मानवता को हृदंक में बिठाए देश व संसार के अधम समझे जाने वाले जीवो के कलुषकालीमा को उच्छिन्न करने के लिए अपनी बाहों को सप्रश्रय उनके गले में डालते यह आगे बढ़ते हैं ।
19वीं शताब्दी के अंत और 20वीं शताब्दी के आरंभ के साथ भारतीय लोकजीवन में जागरण की एक अंगड़ाई दिखाई पड़ी । पढ़े-लिखे भारतीयों में पतन एवं पराजय की अनुभूति होने लगी , लेकिन वे समझ नहीं पाते थे कि उन्हें क्या करना चाहिए ? इस वेदना ने भारत के कई प्रांतों में प्रतिहिंसा की भावना को गहरा किया , जिससे कुछ लोग विद्रोही, क्रांतिकारी, हिंसक कृतियों की ओर अग्रसर हुए, परंतु उसका भारतीय लोक जीवन पर कोई विशेष प्रभाव नहीं था ।
भारतीय जनता गुलामी की बेड़ियों में बंधी गरीबी और अगणित कठिनाइयों के बीच भाग्य के चरणों पर असहाय पड़ी किसी तरह दिन व्यतीत कर रही थी । कुछ ऐसी ही स्थिति में भारतीय लोक मंच पर भारत के भाग्याकाश में गांधी रूपी प्रखर प्रभाकर का जन्म हुआ । इस देश के राष्ट्रीय जीवन में गांधी जी का प्रवेश इस युग की एक आश्चर्यजनक घटना है , उनके आते ही मुर्दे में हरकत हुई । स्वास संचार हुआ , फिर उसने आंखें खोली , कुतूहल से अपने चतुर्दिक निहारा और चंद दिनों बाद एक झटके के साथ उठ बैठा । लक्ष्य गामी आवाज सुनी और पूरी तन्मयता के साथ उस दिशा में चल पड़ा । यह प्रथम अवसर था , हिंदुस्तान के नर नारी अबाल, वृद्ध एक साथ गांधी रूपी दिवाकर की ज्ञान रश्मि से एक साथ उठकर लक्ष्य की प्राप्ति के लिए चल पड़े । यह पहली बार उन्हें अपनी अज्ञात, असीमित अदम्य साहस एवं शक्ति की अनुभूति हुई । गांधी जी का तेज मध्याकाश से दीपित सूर्य रश्मियों के सदृश संपूर्ण उर्वरा भारत भूमि पर छा गया । गांधीजी हमारे जीवन में शतधा ज्योति धारा के रूप में समा गए और उन्होंने हमें अपने स्वरूप का वह दर्शन कराया, जिसे हम सदियों से भूले हुए थे , उन्होंने हमारे भीतर के सब रहस्यमय और ऊदांत तत्वों को झकझोर दिया , फिर क्या था ? भारतीयों को आत्म गौरव एवं देश की शुचिता का वह अभिज्ञान हुआ की वह समझ गए कि मानव केवल शरीर मात्र ही नहीं है , उन्होंने हमारी आत्मा को एक झटके के साथ छू दिया । तत्काल जादू सा हुआ , मिट्टी के लोदों से निर्जीव मानव अकस्मात शेर बन गया । व्यक्ति और समाज पर छाई चतुर्दिक भय की तमिस्रा छिन्न-भिन्न हो गई और आत्मविश्वास तथा निर्भय सत्कर्म का अरुणोदय हुआ । विश्व के इतिहास में ऐसी अपरा घटना नहीं है, जिसमें कोटि-कोटि मनुष्यों का असहाय समाज इस प्रकार इतने थोड़े समय में देखते देखते अपने पैरों पर उठ खड़ा हुआ हो । निश्चय ही भारत के किसी अधिवासी के लिए गांधीजी को विस्मृत करना संभव नहीं है । आप उनका विरोध कर सकते हैं, उनके सिद्धांतों का उपहास कर सकते हैं किंतु किसी की शक्ति नहीं कि उनको अपने मानस परिधि से बाहर निकाल कर उनके प्रभाव से सर्वथा अछूता रह सके । इस देश का कोना कोना उनकी पद ध्वनि और वह ओजस्वी वाणी से ध्वनित और मुखरित हुआ है । उस वाणी में व्यथा है , उस्मा है, तेज है, आज है, स्फूर्ति है । इस देश की जनता की व्यथा समझने और उसके निराकरण की चेष्टा उनके द्वारा लिखे लेखों एवं टिप्पणियों में दिखाई देती है, उनकी दृष्टि चतुर्दिक थी । पीड़ित एवं त्रस्त वर्गों के प्रति उनकी गहन वेदना थी , सहृदय को बलात आकृष्ट कर लेती है । गांधीजी हमसे भारतीय महत संस्कार, पवित्रता, आत्म बलिदान, निस्वार्थ सेवा , निष्काम कर्म, अभय एवं अहिंसा की अपेक्षा रखते थे । इन महान गुणों के वह स्वयं मूर्त रूप थे ,उनके द्वारा बताए गए विभिन्न सिद्धांतो को अपनाकर हम आज भी भारत को सुदृढ़ एवं शक्तिशाली बना सकते हैं । इस प्रकार हम कह सकते हैं कि गांधी जी के विचारों की आज भी समाज के विकास के लिए महती आवश्यकता है । आज भी हमारा समाज गांधीजी के सिद्धांतों को अमल करके देश में समृद्धि, शांति एवं एकता का सूत्रपात कर सकता है । जय हिंद ।