लखनऊ 27 मई : सभी पाठको के मन मे एक सवाल कौध रहा होगा कि आखिर पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम मे मुख्य अभियन्ताओ ने संघ की सदस्यता से इस्तीफा क्यो दे दिया परन्तु पश्चिमाचल डिस्कॉम मे यह आन्दोलन जोर पकडता ही जा रहा है आखिर ऐसा क्यो तो इसका राज जानने के लिए आपको यह जानना होगा कि *पूर्वांचल मे इस संगठन के पदा अधिकारीगण अपने से वरिष्ठ सदस्यो से हर समय दबाव मे मन चाहा काम करने का दबाव डालते है निदेशक तक से दुर्व्यवहार करते है रात दो दो बजे तक घेर कर बेइज्जत करते है मुख्य अभियन्ताओ ने अपनी बेज्जती से जिससे छुब्ध हो कर मुख्य अभियन्ताओ ने इस्तीफे दिये । परन्तु पश्चिमाचल और दक्षिणाचल मे यह एक भ्रष्टाचारियो का एक काकस है जिसे पाठको को समझना होगा और कैसे अनुभवही बडका बाबूओ को यह सफेद हाथी बना कर चराते है तो कहानी शुरू होती है
कुछ साल पहले एक मामले मे *गाजियाबाद के एक अभियन्ता ने वहा डिस्कॉम मे तैनात बडका बाबू को एक बडी मुसीबत से रात मे बचाया था जिसका इनाम मिला मुख्य अभियन्ता गाजियाबाद के रूप मे तैनाती और लूट की छूट क्यो कि जब सईया भऐ कोतवाल तो डर काहे का तो भाई खूब चला चादी का जूता और नतीजा आय से अधिक सम्पत्ति की जांच के रूप मे खैर वो जाच चलती रही और जनाब निदेशक बन गये उसी डिस्कॉम मे खैर अब जानते है कि महासचिव महोदय का वर्तमान निदेशक जी से क्या सम्बन्ध है तो जब गाजियाबाद मे वह घटना घटी थी तो जनाब भी वहा मौजूद थे *इस घटना की चर्चा दूसरे दिन वहा के अखबारो ने खूब चटकारे लेकर लिखी थी जिसको सम्भालने की जिम्मेदारी इन महोदय के कन्धो पर आयी मामला रफादफा हो गया और ईनाम मे *पोस्टिंग मिली SDO मोहन नगर गाजियाबाद मे ऊपर से प्रबंधनिदेशक और मुख्य अभियन्ता का सर पर हाथ तो जब ऊपर वाला मेहरबान तो गधा पहलवान यहा भी खूब चला चादी का जूता और फिर बिल्ली के भाग्य से छीका टूटा जनाब बन गये महासचिव अब तो इनके पैर ही जमीन पर नही लगते महीने मे 10 दिन लखनऊ मे और शेष दिन अपनी 25 लाख की गाडी मे सवार हो गाजियाबाद मेरे दावो की सच्चाई टोल टैक्स के बूथ की रसीदे व वहा लगे कैमरो से दावे की तसदीक की जा सकती है लेकिन बकरे की माॅ कब तक खैर मनाती किसी ने चुटकी काट ली कि जनाब लखनऊ मे कम और गाजियाबाद मे ज्यादा रहते है मजे की बात नौकरी मात्र छः साल की है और हैसियत मत पूछो तो यह है सम्बन्ध जनाब का पश्चिमाचल से लेकिन इन सब मे कुछ राज तो छुपे ही रह गये *इस काकस का तीसरा कोना मेरठ मे तैनात एक अधीक्षण अभियन्ता है सूत्र बताते है कि जनाब *छिपे शेर है और निदेशक महोदय के खास यह जनाब अभियन्ताओ को फोन कर कर धमकी देते है कि ACR तो साहब को ही लिखनी है मरता क्या ना करता लोग डर कर असहयोग आंदोलन मे शामिल हो रहे है । वैसे पूर्व प्रबंध पावर कार्पोरेशन ने वो नियम की अनदेखी कर दी गयी थी जिसमे एक डिस्कॉम का चयनित निदेशक को किसी भी दूसरे डिस्कॉम मे स्थानांतरण किया जाने की ताकत है *अगर प्रबन्धन उस नियमावली का पालन करे तो 24 घण्टे मे ही इस आन्दोलन की हवा निकल जाएगी वैसे ईमानदार अध्यक्ष के हाथ मे यह ताकत है परन्तु पता नही क्यो महोदय अपनी ताकत को इस्तमाल नही कर रहे। खैर
युद्ध अभी शेष है